छत्तीसगढ़ के ‘नियाग्रा’ तट पर दिखी बस्तरिया संस्कृति:चित्रकोट महोत्सव में लोक नाचा दलों ने दी शानदार परफॉर्मेंस,कवासी बोले-अब एक मंच पर खेल-नृत्य का टैलेंट
एशिया का नियाग्रा कहे जाने वाले बस्तर के चित्रकोट वाटर फॉल के तट पर चित्रकोट महोत्सव का आयोजन किया गया है। इस तीन दिवसीय महोत्सव का मंगलवार की रात शुभारंभ किया गया। पहले दिन बस्तर के लोक नाचा दल ने अपनी प्रस्तुति दी। इस मौके पर मौजूद छत्तीसगढ़ के आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने कहा कि, इस महोत्सव में एक मंच पर नाच-गान से लेकर खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है। बस्तर के टैलेंट को निखारने का यह सुनहरा मंच है।
दरअसल, 14 से 16 फरवरी इन तीन दिनों तक चित्रकोट महोत्सव का आयोजन किया गया है। इस चित्रकोट महोत्सव में पूरे बस्तर संभाग के कलाकार अपनी प्रस्तुति देंगे। इसके साथ ही कई तरह के खेलों का आयोजन भी किया गया है। जिसमें पूरे संभाग के सैकड़ों खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया है। 14 फरवरी की रात सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। पारंपरिक लोक नाचा दलों ने अपनी प्रस्तुति दी।
चित्रकोट और बस्तर एक दूसरे के पर्याय- लखमा
आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने कहा कि चित्रकोट और बस्तर एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं। देश-विदेश में लोग बस्तर को चित्रकोट जलप्रपात के कारण पहचानते हैं। चित्रकोट में आयोजित यह महोत्सव बस्तर की जनजातीय संस्कृति को विश्व पटल पर पहुंचाने का एक सुनहरा अवसर है। उन्होंने कहा कि, बस्तर की लोक संस्कृति सहज और सरल होने के साथ ही अत्यंत आकर्षक भी है, जिससे पूरे विश्व को परिचित कराने की आवश्यकता है।उन्होंने कहा कि, इस दिशा में छत्तीसगढ़ शासन बहुत ही सराहनीय प्रयास कर रही है। बस्तर की जनता उत्सवप्रिय है। छत्तीसगढ़ शासन की नीतियों के कारण किसान, वनोपज संग्राहक, पुजारी, गायता, भूमिहीन कृषि मजदूर, स्व सहायता समूह की महिलाओं में खुशी है।यही कारण है कि मेले मड़ाई में अब लोगों की संख्या में भी लगातार बढ़ती जा रही है।