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Kinnar Akhara: क्या है किन्नर अखाड़ा, जिससे जुड़ी हैं ममता कुलकर्णी?

प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में आस्था का सैलाब देखने को मिल रहा है. कई लोग गृहस्थ जीवन छोड़कर अध्यात्म का सहारा लेते भी दिख रहे हैं. जिसको लेकर तमाम चरह की चर्चाएं चल रहीं हैं. इस बीच बीते शुक्रवार को फिल्म अभिनेत्री ममता कुलकर्णी ने भी आध्यात्मिक जीवन अपनाते हुए किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर की उपाधि ग्रहण की.


 किन्नर अखाड़े के आचार्यों ने उनका पट्टाभिषेक किया. 53 वर्षीय ममता कुलकर्णी अब यमाई ममता नंद गिरि के नाम से जानी जाएंगी. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि किन्नर अखाड़े की शुरुआत कब हुई और ये कैसे काम करते हैं.

किन्नर अखाड़ा की स्थापना 13 अक्टूबर, 2015 को उज्जैन में की गई थी. इस अखाड़े ने पहली बार 2016 में उज्जैन में आयोजित कुंभ मेले में भाग लिया था. इसके बाद 2019 में प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले में इस अखाड़े ने अपने आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी के नेतृत्व में भाग लिया.

देश के सबसे बड़े अखाड़े, श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े, ने यह कहते हुए किन्नर अखाड़े को स्वयं से जोड़ा कि इससे सनातन परंपरा को मजबूती मिलेगी. 2019 के कुंभ मेले में किन्नर अखाड़े ने न केवल देवत्व यात्रा (पेशवाई का ही एक रूप) निकाली, बल्कि शाही (अब अमृत स्नान) स्नानों सहित सभी छह स्थानों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है.

अलग-अलग जगहों से मिली अनुसार, अखाड़े के इष्टदेव अर्धनारीश्वर और इष्टदेवी बहुचरा माता हैं. किन्नर अखाड़े की धर्म ध्वजा सफेद रंग की होती है, जिसका किनारा सुनहरे रंग का होता है. जूना अखाड़े के साथ हुए एक समझौते के अनुरूप, किन्नर अखाड़े की धर्म ध्वजा भी जूना अखाड़े के साथ फहराई जाती है.

जानकारी के अनुसार, सनातन धर्म में शंकराचार्य का पद सबसे बड़ा माना जाता है. शंकराचार्य को वेदों और धर्म का सबसे बड़ा उपदेशक माना जाता है. उनकी उपाधि सभी हिन्दू समुदायों में सर्वोत्तम मानी जाती है. इसके बाद महामंडलेश्वर का पद आता है. महामंडलेश्वर का पद शंकराचार्य के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक पद माना जाता है.

खासकर उन क्षेत्रों में जहां विभिन्न अखाड़ों का शासन और धार्मिक निर्णय होता है. महामंडलेश्वर समाज को मार्गदर्शन देने का कार्य करता है और जब किसी धर्मिक समुदाय को कोई समस्या या विवाद होता है, तो उनका निर्णय अंतिम होता है.

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