रायपुर: मैथिली ठाकुर बोलीं-मेरा मन बॉलीवुड की ओर नहीं:बताया कैसे बनीं भजन गायिका; पिता कहते थे-पढ़ाई साइड में रखो, रियाज के समय कंप्रोमाइज न हो
भजन और लोकगीतों को गाकर मशहूर हुईं मैथिली ठाकुर रायपुर पहुंची। VIP राेड स्थित राम मंदिर में मैथिली के भजनों का कार्यक्रम हुआ। यहां इस यंग सिंगर ने ठुमक चलत राम चंद्र, जुग-जुग जिया हो ललनवा जैसे मशहूर भजन और लोकगीतों की प्रस्तुतियां दी। इससे पहले मैथिली ठाकुर ने अपने सफर के बारे में मीडिया को बताया। ये भी बताया कि आखिर कैसे वो सिंगर बनीं और कम उम्र में कामयाबी मिली।
मैथिली ने कहा- मैं काफी भाग्यशाली हूं कि मेरा जन्म जिस परिवार में हुआ। वहां सभी लोग गाने को लेकर गंभीर हैं। पिता जी कहते हैं पढ़ाई को साइड में रखो, गाने के रियाज के समय में कोई कंप्रोमाइज नहीं होना चाहिए, अभ्यास पूरा होना चाहिए। पढ़ाई साथ-साथ हो जाएगी, एक काम में ध्यान लगाने से पढ़ाई में हम खुद एक्सीलेंट हो जाते हैं, मुझे पूरा सपाेर्ट मिला। बॉलीवुड जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि मेरा मन बॉलीवुड की ओर है।
क्या कभी वेस्टर्न म्यूजिक की ओर ध्यान गया ?
इस सवाल के जवाब में मैथिली ने कहा- वो समय अलग था, जब बच्चे वेस्टर्न कल्चर के पीछे भागते थे। मगर अब समय बदल गया है। पिछले 6-7 साल से मैं खुद ये ऑब्जर्व कर रही हूं कि सिर्फ बड़े ही नहीं छोटे बच्चे भी अपने धर्म और आध्यात्म के करीब आ रहे हैं। लोग अब धर्म को बचाने के लिए जागरूक हो रहे हैं। छोटे उम्र के लोग उपासक बन रहे हैं। अब हम नहीं कह सकते कि वेस्टर्न चीजें हावी हो रही हैं।
दादा ने सिखाया भजन
मैथिली ने बताया कि बचपन में उन्हें उनके दादा भजन सुनाया करते थे। जब भी अपने गांव जाती थींतो दादा कुछ नए भजन सिखा दिया करते थे। इसके बाद मैं प्रैक्टिस करती थी। मैथिली के पिता रमेश ठाकुर म्यूजिक टीचर हैं। परिवार बिहार से दिल्ली शिफ्ट हो गया, इसके बाद वहीं पिता ने बेटी को म्यूजिक सिखाना शुरू किया। मैथिली ने कहा कि सीखकर गाने से फर्क पड़ा। मैं जो आज गा रही हूं, समझिए कि मेरी आवाज में मेरे पिता गा रहे हैं। छोटी थी गांव में रहना होता था। वहां कीर्तन करना होता था। 7 साल की उम्र से ही म्यूजिक का माहौल मिला और सिंगर ही बनने की सोची।
राम के ननिहाल आने की खुशी
मैथिली ने कहा- पहली बार रायपुर आई हूं। यह राम जी का ननिहाल है और हम जहां से आते हैं, वो राम जी का ससुराल है। उनके ननिहाल में आप सभी खुश हैं, लेकिन जब राम जी हमारे यहां पाहुन बनकर आते हैं, तो हमारी खुशी चौगुनी हो जाती है।
मैथिली ने आगे कहा- मुझे ये बहुत जल्दी एहसास हो गया कि मुझे क्या पसंद है और मैं क्या करना चाहती हूं। मैं भजन और लोक गीत ही गाना चाहती हूं, मैं इसी में आगे बढ़ना चाहती हूं। पापा ने भी एक रास्ता बता दिया, करना है तो एक ही करना है, नहीं तो नहीं करना है। मुझे लगता नहीं कि मेरा मन बॉलीवुड की दिशा में है। अगर बॉलीवुड से ऑफर आया भी तो पापा जो कहेंगे मैं वहीं करूंगी। मैथिली ने बताया कि उन्हें भजन गाने की प्रेरणा उनके दादा से मिली है।
मैथिली ने कहा- मैं यह सोचकर नहीं गाती हूं कि आज का कार्यक्रम बहुत शानदार करना है। मैं इन सभी चीजों के बारे में सोचती नहीं हूं। जब भी मैं अपने मंच पर जाती हूं, मैं यह सोचती हूं कि मुझे अच्छे से गाना है और गीत को भगवान से कनेक्ट करना है। ताकि मैं जो सोच रही हूं, वह मुझे सुनने वाले भी महसूस कर पाएं।