छत्तीसगढ़

लोक कला : खैरागढ़ विश्वविद्यालय की एक और उपलब्धि, पहली बार छत्तीसगढ़ी लोक कलाकारों पर समग्र संवाद सम्पन्न

खैरागढ़। इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ में लोकसंगीत पर आधारित एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न हुई। विश्वविद्यालय के लोकसंगीत विभाग और कला संकाय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित यह राष्ट्रीय संगोष्ठी “राष्ट्रीय सांस्कृतिक अस्मिता में छत्तीसगढ़ी लोक कलाकारों की भूमिका” पर केन्द्रित थी। मुख्यमंत्री के सलाहकार विनोद वर्मा के मुख्य अतिथ्य और कुलपति पद्मश्री मोक्षदा (ममता) चंद्राकर की अध्यक्षता में उद्घाटित इस दो दिवसीय संगोष्ठी में राष्ट्रीय स्तर के विषय-विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे, वहीं लगभग दर्जन भर शोधपत्रों का वाचन हुआ।

लोक संगीत विभाग के अधिष्ठाता डाॅ. योगेन्द्र चौबे के संयोजन तथा सहायक प्राध्यापक डाॅ. दीपशिखा पटेल के सह-संयोजन में संपन्न इस वृहद कार्यक्रम में पहले दिन साहित्यकार एवं लोक कला मर्मज्ञ डाॅ. पीसी लाल यादव ने पंडवानी के प्रतिनिधि कलाकार झाडूराम देवांगन, पद्मश्री पूनाराम निषाद एवं अन्य पर केन्द्रित वक्तव्य दिया। छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य नाचा गम्मत के पुरोधा रामचंद्र देशमुख, दाऊ दुलार सिंह मंदराजी एवं दाऊ महासिंह चंद्राकर के द्वारा राष्ट्रीय सांस्कृतिक अस्मिता के लिए निभाई गई उनकी भूमिका पर सुप्रसिध्द लोक कलाकार दीपक चंद्राकर और लोक कला मर्मज्ञ डाॅ. जीवन यदु ने विस्तार से प्रकाश डाला। भरथरी की प्रतिनिधि गायिका सुरूजबाई खांडे एवं पंथी के प्रसिध्द कलाकार देवदास बंजारे पर समीक्षक एवं साहित्यकार डाॅ. विनय कुमार पाठक तथा छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के सचिव डाॅ. अनिल कुमार भतपहरी ने विस्तार से बातचीत की। दो दिनों की संगोष्ठी के दौरान प्रसिध्द लोक सांस्कृतिक संस्था “रंग-सरोवर” के द्वारा संस्कृतिकर्मी भूपेन्द्र साहू के निर्देशन में “भरथरी ” की संगीतमयी मंचीय प्रस्तुति दी गई।

संगोष्ठी के अगले दिन सुप्रसिध्द रंगकर्मी पद्मभूषण हबीब तनवीर एवं उनके नाचा के कलाकारों मदन निषाद, लालुराम, पद्मश्री गोविंदराम निर्मलकर, फिदाबाई मरकाम आदि प्रो. रमाकांत श्रीवास्तव और इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के लोक संगीत विभाग एवं कला संकाय के अधिष्ठाता डाॅ. योगेन्द्र चौबे ने विस्तार से चर्चा की। ‘छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक साहित्य’ पर हिन्दी के विभागाध्यक्ष व दृश्यकला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. डाॅ. राजन यादव ने विस्तार से व्यक्तव्य दिया। संगोष्ठी के अंतिम सत्र में लोकसंगीत विभाग के शिक्षकों, विद्यार्थियों ने रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुति दी।

समापन समारोह की मुख्य अतिथि कुलपति पद्मश्री मोक्षदा (ममता) चंद्राकर थीं, जबकि अध्यक्षता प्रो. काशीनाथ तिवारी ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में कुलसचिव प्रो. डॉ. आईडी तिवारी थे, जबकि निष्कर्ष अभिव्यक्ति प्रो. डॉ. रमाकान्त श्रीवास्तव ने दी। लोक संगीत विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ. दीपशिखा पटेल ने आभार प्रदर्शन किया। लोक संगीत विभाग की ओर से डॉ. बिहारी तारम, डॉ. नत्थू तोड़े, डॉ. परम आनंद पांडेय, डॉ. विधा सिंह राठौर, मनोज डहरिया, अभिनव, अनिल, समस्त शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए खूब मेहनत की।

खैरागढ़ विश्वविद्यालय में यह संभवतः पहला मौका है, जब छत्तीसगढ़ी लोक कलाकारों की राष्ट्रीय अस्मिता को लेकर दिए गए उनके उल्लेखनीय सांस्कृतिक अवदान पर समग्र रूप से चर्चा हुई। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. डाॅ. आईडी तिवारी, समस्त अधिष्ठाता, शिक्षक, विद्यार्थी, शोद्यार्थी के अलावा बड़ी संख्या में संगोष्ठी के प्रतिभागी मौजूद थे।

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